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Friday, March 29, 2019

ज्योतिष -अशुभ योग, शुभ योग

ज्योतिष -अशुभ योग

 1.   शकट योग

वैदिक ज्योतिष के अनुसार शकट योग को अशुभ योग माना जाता है। जब किसी कुंडली में शकट योग होता है तो जातक को गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ है। गज केसरी योग की भांति शकट योग भी किसी कुंडली में गुरु और चन्द्रमा के संयोग से ही बनता है किन्तु इस योग का प्रभाव शुभ  होकर अशुभ माना जाता है।

2.   अंगारक योग

यदि किसी कुंडली में मंगल का राहु या केतु में से किसी के साथ स्थान अथवा दृष्टि से संबंध स्थापित हो जाए तो अंगारक योग का निर्माण हो जाता है। इसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामकहिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयोंमित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध भी खराब हो जाते हैं। 

3.   दुर योग 

यदि किसी कुंडली में दसवें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दुर योग बन जाता है। इससे व्यक्ति के व्यवसाय पर बहुत अशुभ प्रभाव पडता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती हैव्यक्ति अनैतिक तथा अवैध कार्यों के माध्यम से धन कमाते हैं जिसके कारण इन जातकों का समाज में कोई सम्मान नहीं होता तथा ऐसे जातक अपने लाभ के लिए दूसरों को चोट पहुंचाने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते।

4.   दरिद्र योग

यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बन जाता है। ऐसे में व्यक्ति के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है। दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है।

5.   ग्रहण योग

यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए या किसी कुंडली में यदि सूर्य अथवा चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव हो तब कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। ग्रहण योग से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं पैदा होती है व्यक्ति की मानसिक स्थिति अत्यंत खराब रहती हैमस्तिष्क स्थिर नहीं रहताकार्य में बार-बार बदलाव होता हैबार-बार नौकरी और शहर बदलना पड़ता हैपागलपन के दौरे तक पड़ सकते हैं। 

6.   नाग दोष

यदि किसी कुंडली में राहु अथवा केतु कुंडली के पहले घर मेंचन्द्रमा के साथ अथवा शुक्र के साथ स्थित हों तो ऐसी कुंडली में नाग दोष बन जाता है जो कुंडली में इस दोष के बल तथा स्थिति के आधार पर जातक को विभिन्न प्रकार के कष्ट तथा अशुभ फल दे सकता है।

7.   केमद्रुम योग

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा के अगले और पिछले दोनों ही घरों में कोई ग्रह  हो तो या कुंडली में जब चंद्र द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चंद्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह  हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है। जिस कुंडली में यह योग होता है वह जीवनभर धन की कमीनिर्धनता अथवा अति निर्धनताविभिन्न प्रकार के रोगोंमुसीबतोंव्यवसायिक तथा वैवाहिक जीवन में भीषण कठिनाईयों आदि का सामना करना पड़ता है।  

8.   कुज योग

यदि किसी कुंडली में मंगल लग्नचतुर्थसप्तमअष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं। जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए। 

9.   षड़यंत्र योग

षड़यंत्र योग यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह  हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है। जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है जैसे धोखे से धन-संपत्ति का छीना जानाविपरीत लिंगी द्वारा मुसीबत पैदा करना आदि। 

10. भाव नाश योग

जब कुंडली में किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठेआठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और उससे भाव नाश योग केजते है। उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठेआठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। 

11. अल्पायु योग

जब कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। जिस कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है और उसकी आयु कम होती है। 

12. गुरु चांडाल योग

गुरु चांडाल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसारयदि किसी कुंडली में गुरु अर्थात बृहस्पति के साथ राहु या केतु में से कोई एक स्थित हो अथवा किसी कुंडली में गुरु का राहु अथवा केतु के साथ दृष्टि आदि से कोई संबंध बन रहा हो तो ऐसी कुंडली में गुरु चांडाल योग बनता है। इसके दुष्प्रभाव के कारण जातक का चरित्र भ्रष्ट हो सकता हैजातक अनैतिक अथवा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है। इस दोष के निर्माण में बृहस्पति को गुरु कहा गया है तथा राहु और केतु को चांडाल माना गया है और गुरु का इन चांडाल माने जाने वाले ग्रहों में से किसी भी ग्रह के साथ स्थिति अथवा दृष्टि के कारण संबंध स्थापित होने से कुंडली में गुरु चांडाल योग का बनना माना जाता है।

13. चांडाल योग 

चांडाल योग कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु का उपस्थित होना चांडाल योग का निर्माण करता है। इस योग का सर्वाधिक प्रभाव शिक्षा और धन पर होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में चांडाल योग होता है वह शिक्षा के क्षेत्र में असफल होता है और कर्ज में डूबा रहता है। चांडाल योग का प्रभाव प्रकृति और पर्यावरण पर भी 
14. वैधव्य योग
*वैधव्य योग बनने की कई स्थितियां हैं। वैधव्य योग का अर्थ है विधवा हो जाना। सप्तम भाव का स्वामी मंगल होने व शनि की तृतीय, सप्तम या दशम दृष्टि पड़ने से भी वैधव्य योग बनता है। सप्तमेश का संबंध शनि, मंगल से बनता हो व सप्तमेश निर्बल हो तो वैधव्य का योग बनता है।
*जातिका को विवाह के 5 साल तक मंगला गौरी का पूजन करना चाहिए, विवाह पूर्व कुंभ विवाह करना चाहिए और यदि विवाह होने के बाद इस योग का पता चलता है तो दोनों को मंगल और शनि के उपाय करना चाहिए।


*शनि और चंद्र की युति या शनि की चंद्र पर दृष्टि से विष योग बनता है। कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चंद्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र में हो अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक दूसरे को देख रहे हों तो तब भी विष योग बनता है। यदि 8वें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक लग्न में हो तो भी यह योग बनता है।
*इस योग से जातक को जिंदगीभर कई प्रकार की विष के समान कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पूर्ण विष योग माता को भी पीड़ित करता है।
*इस योग के निदान हेतु संकटमोचक हनुमानजी की उपासना करें और प्रति शनिवार को छाया दान करते रहें। सोमवार को शिव की आराधना करें या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

ज्योतिष - शुभ योग
1.   महालक्ष्मी योग

जातक के भाग्य में धन और ऐश्वर्य का प्रदाता महालक्ष्मी योग होता है। धनकारक योग या महालक्ष्मी योग तब बनता है जब द्वितीय स्थान का स्वामी जिसे धन भाव का स्वामी भी माना जाता है यानि गुरुग्रह बृहस्पति एकादश भाव में बैठकर द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा हो यह योग बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे जातक की दरिद्रता दूर होती है और समृद्धि उसका स्वागत करती है। लेकिन यह योग भी तभी फलीभूत होते हैं जब जातक योग्य कर्म कर रहा हो। 

2.   शुभ योग

किसी जातक की कुंडली में अगर राहु छठे भाव में स्थित होता है और उस कुंडली के केन्द्र में गुरु विराजमान होता है तो यहां अष्टलक्ष्मी नामक शुभ योग बनता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है वह व्यक्ति कभी धन के अभाव में नहीं रहता।

3.   सरस्वती योग

सरस्वती जैसा महान योग जातक की कुंडली में तब बनता है जब शुक्रबृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ में हों या फिर केंद्र में बैठकर युति या फिर दृष्टि किसी भी प्रकार से एक दूसरे से संबंध बना रहे हों यह योग जिस जातक की कुंडली में होता है उस पर मां सरस्वती मेहरबान होती हैं। इसके कारण रचनात्मक क्षेत्रों में विशेषकर कला एवं ज्ञान के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाते हैं जैसे कलासंगीतलेखन एवं शिक्षा के क्षेत्र में आप ख्याति प्राप्त कर सकते है।

4.   नृप योग

ये योग अपने नाम के अनुसार ही है। जातक की कुंडली में यह योग तभी बनता है जब तीन या तीन से अधिक ग्रह उच्च स्थिति में रहते हों जिस जातक की कुंडली में यह योग बनता है उस जातक का जीवन राजा की तरह व्यतीत होता है। अगर व्यक्ति राजनीति में है तो वह इस योग के सहारे शिखर तक पहुंच सकता हैं।  

5.   अमला योग

जब जातक की जन्म पत्रिका में चंद्रमा से दसवें स्थान पर कोई शुभ ग्रह स्थित हो तो यह योग बनता है। अमला योग भी व्यक्ति के जीवन में धन और यश प्रदान करता है।

6.   गजकेसरी योग

असाधारण योग की श्रेणी का योग है गजकेसरी। जब चंद्रमा से केंद्र स्थान में पहलेचौथेसातवें या दसवें स्थान में बृहस्पति हो तो इस योग को गजकेसरी योग कहते हैं। इसके अलावा चंद्रमा और बृहस्पति का साथ हो तब भी इस योग का निर्माण होता हैं। पत्रिका के लग्न स्थान में कर्कधनुमीनमेष या वृश्चिक के होने पर यह कारक प्रभाव माना जाता है। जिसकी जन्म कुंडली में यह योग बनता है वो व्यक्ति बहुत ही भाग्यशाली जातक होता है और वो कभी भी अभाव में जीवन व्यतीत नहीं करता। 

7.   पारिजात योग

जब कुंडली में लग्नेश जिस राशि में हो उस राशि का स्वामी यदि कुंडली में उच्च स्थान या फिर अपने ही घर में हो तो ऐसी दशा में पारिजात योग बनता है। इस योग वाले जातक अपने जीवन में कामयाब होते हैं और सफलता के शिखर पर भी पंहुचते हैं लेकिन रफ्तार धीमी रहती है। लगभग आधा जीवन बीत जाने के बाद इस योग के प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।

8.   छत्र योग

जब जातक की कुंडली में चतुर्थ भाव से दशम भाव तक सभी ग्रह मौजूद हों तब यह योग बनता है। जब जातक अपने जीवन में निरंतर प्रगति करते हुए उन्नति करते हुए उच्च पदस्थ प्राप्त करता है तो छत्र योग के कारण ही सब संभव होता है। छत्र योग भगवान की छत्रछाया यानि प्रभु की कृपा वाला योग माना जाता है। 
पंचमहापुरुष योग - शश योगहंस योगमालव्य योगरूचक योग एवम भद्र योग

9.   शश योग

यह योग पंचमहापुरुष योग में से एक है। यदि किसी कुंडली में शनि लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शनि यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में तुलामकर अथवा कुंभ राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में शश योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को स्वास्थ्यलंबी आयुपरिश्रम करने वाला स्वभावविशलेषण करने की क्षमतानिरंतर तथा दीर्घ समय तक प्रयास करते रहने की क्षमतासहनशीलताछिपे हुए रहस्यों का भेद जान लेने की क्षमता तथा कूटनीतिक क्षमताविभिन्न प्रकार के कार्यक्षेत्रों में सफलता आदि प्रदान करता है। 

10. हंस योग

यदि किसी कुंडली में बृहस्पति अर्थात गुरु लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात बृहस्पति यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में कर्कधनु अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में हंस योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को सुखसमृद्धिसंपत्तिआध्यात्मिक विकास तथा कोई आध्यात्मिक शक्ति भी मिल  मिल सकती है। 

11. मालव्य योग

यदि किसी कुंडली में शुक्र लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात शुक्र यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृषतुला अथवा मीन राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में मालव्य योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को साहसपराक्रमशारीरिक बलतर्क करने की क्षमता तथा समयानुसार उचित निर्णय लेने की क्षमता प्रदान कर सकता है।

12. रूचक योग

यदि किसी कुंडली में मंगल लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात मंगल यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में मेषवृश्चिक अथवा मकर राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में रूचक योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को शारीरिक बल तथा स्वास्थ्यपराक्रमसाहसप्रबल मानसिक क्षमतासमयानुसार उचित तथा तीव्र निर्णय लेने की क्षमताव्यवसायिक क्षेत्रों में सफलता तथा प्रतिष्ठा आदि मिलती है।

13. भद्र योग

यदि किसी कुंडली में बुध लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हों अर्थात बुध यदि किसी कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में मिथुन अथवा कन्या राशि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में भद्र योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को युवापनबुद्धिवाणी कौशलसंचार कौशलविशलेषण करने की क्षमतापरिश्रम करने का स्वभावचतुराईव्यवसायिक सफलताकलात्मकता तथा अन्य कई प्रकार के शुभ फल प्रदान होते है।

14. बुध आदित्य योग

जब किसी कुंडली के किसी घर में जब सूर्य तथा बुध संयुक्त रूप से स्थित हो जाते हैं तो ऐसी कुंडली में बुध आदित्य योग का निर्माण हो जाता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को बुद्धिविशलेषणात्मक क्षमतावाक कुशलतासंचार कुशलतानेतृत्व करने की क्षमतामानसम्मानप्रतिष्ठा तथा ऐसी ही अन्य कई प्रकार के शुभ लाभ होते है। 

15. सिद्धि योग

जब किसी कुंडली में वारनक्षत्र और तिथि के बीच आपसी तालमेल होने पर सिद्धि योग का निर्माण होता है। उदाहरण स्वरूप सोमवार के दिन अगर नवमी अथवा दशमी तिथि हो एवं रोहिणीमृगशिरापुष्यश्रवण और शतभिषा में से कोई नक्षत्र हो तो सिद्धि योग बनता है।  इस योग से जातक को सिद्धि पर्पट होती है। 

16. महाभाग्य योग

यदि किसी पुरुष का जन्म दिन के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्न अर्थात पहला घरसूर्य तथा चन्द्रमातीनों ही विषम राशियों जैसे कि मेषमिथुनसिंह आदि में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में महाभाग्य योग बनता है। यदि किसी स्त्री का जन्म रात के समय का हो तथा उसकी जन्म कुंडली में लग्नसूर्य तथा चन्द्रमा तीनों ही सम राशियों अर्थात वृषकर्ककन्या आदि में स्थित हों तो ऐसी स्त्री की कुंडली में महाभाग्य योग बनता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आर्थिक समृद्धिसरकार में कोई शक्तिशाली पदप्रभुत्वप्रसिद्धि तथा लोकप्रियता आदि जैसे शुभ फल मिलते  है। 

17. सर्वार्थ सिद्धि योग 

यह शुभ योग वार और नक्षत्र के मेल से बनने वाला योग है। गुरुवार और शुक्रवार के दिन अगर यह योग बनता है तो एक तिथि विशेष को यह योग बनता है। कुछ विशेष तिथियों में यह योग निर्मित होने पर यह योग नष्ट भी हो जाता है। सोमवार के दिन रोहिणीमृगशिरापुष्यअनुराधाअथवा श्रवण नक्षत्र होने पर सर्वार्थ सिद्धि योग बनता है जबकि द्वितीया और एकादशी तिथि होने पर यह शुभ योग अशुभ मुहूर्त में बदल जाता है।  

18. अमृत सिद्धि योग 

यह योग वार और नक्षत्र के तालमेल से बनता है। इस योग के बीच अगर तिथियों का अशुभ मेल हो जाता है तो अमृत योग नष्ट होकर विष योग में परिवर्तित हो जाता है। सोमवार के दिन हस्त नक्षत्र होने पर जहां शुभ योग से शुभ मुहूर्त बनता है लेकिन इस दिन षष्ठी तिथि भी हो तो विष योग बनता है। अमृत सिद्धि योग अपने नामानुसार बहुत ही शुभ योग है। इस योग में सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। 

19. गुरु पुष्य योग  

गुरुवार और पुष्य नक्षत्र के संयोग से निर्मित होने के कारण इस योग को गुरु पुष्य योग के नाम से सम्बोधित किया गया है। यह योग गृह प्रवेशग्रह शांतिशिक्षा सम्बन्धी मामलों के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। यह योग अन्य शुभ कार्यों के लिए भी शुभ मुहूर्त के रूप में जाना जाता है।  

20. रवि पुष्य योग 

इस योग का निर्माण तब होता है जब रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र होता है। यह योग शुभ मुहूर्त का निर्माण करता है जिसमें सभी प्रकार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस योग को मुहूर्त में गुरु पुष्य योग के समान ही महत्व दिया गया है

21. पुष्कर योग 

इजब किसी कुंडली में सूर्य विशाखा नक्षत्र में होता है और चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में होता है। सूर्य और चन्द्र की यह अत्यंत दुर्लभ होने से इस योग को शुभ योगों में विशेष महत्व दिया गया हैये सभी शुभ कार्यों के लिए उत्तम मुहूर्त होता है। यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा लग्नेश अर्थात पहले घर के स्वामी ग्रह के साथ हो तथा यह दोनों जिस राशि में स्थित हों उस राशि का स्वामी ग्रह केन्द्र के किसी घर में स्थित होकर अथवा किसी राशि विशेष में स्थित होने से बलवान होकर लग्न को देख रहा हो तथा लग्न में कोई शुभ ग्रह उपस्थित हो तो ऐसी कुंडली में पुष्कल योग बनता है। इसके प्रभाव से जातक को आर्थिक समृद्धिव्यवसायिक सफलता तथा सरकार में प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व का पद प्रदान कर सकता है।

22. अधि योग 

यदि यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से 6, 7 अथवा आठवें घर में गुरुशुक्र अथवा बुध स्थित हो जाते हैं तो ऐसी कुंडली में अधि योग बनता है। ये योग जातक को प्रभुत्वप्रतिष्ठा तथा सामाजिक प्रभाव प्रदान कर सकता है।

23. चन्द्र मंगल योग

जब किसी कुंडली में चन्द्रमा तथा मंगल का संयोग बनता है तो चन्द्र मंगल योग बनता है। इससे जातक को चन्द्रमा तथा मंगल के स्वभावबल तथा स्थिति आदि के आधार पर विभिन्न प्रकार के शुभ अशुभ फल प्रदान कर सकता है। 

24. सुनफा योग 

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में सुनफा योग बनता है। इससे जातक को धनसंपत्ति तथा प्रसिद्धि प्रदान कर सकता है।  किसी कुंडली में केवल सूर्य के ही चन्द्रमा से अगले घर में स्थित होने पर कुंडली में सुनफा योग नहीं बनता बल्कि ऐसी स्थिति में सूर्य के साथ कोई और ग्रह भी उपस्थित होना चाहिए।

25. अनफा योग

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से पिछले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में अनफा योग बनता है।  इसके शुभ प्रभाव से जातक को स्वास्थ्यप्रसिद्धि तथा आध्यात्मिक विकास प्रदान कर सकता है। 

26. दुर्धरा योग 

यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से पिछले घर में तथा चन्द्रमा से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में दुर्धरा योग बनता है। इससे जातक को शारीरिक सुंदरतास्वास्थ्यसंपत्ति तथा समृद्धि प्रदान कर सकता है। 

27. पर्वत योग 

किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर में यदि कम से कम एक ग्रह स्थित हो तो कुंडली में पर्वत योग बनता है जो जातक को उपर बताए गए शुभ फल प्रदान कर सकता है। वहीं पर कुछ अन्य वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि यदि किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर अर्थात 1, 4, 7 तथा 10वें घर में कम से कम एक ग्रह स्थित हो तथा कुंडली के 6 तथा 8वें घर में कोई भी ग्रह स्थित  हो तो कुंडली में पर्वत योग बनता है। किसी कुंडली में इस योग के बनने से जातक को धनसंपत्तिप्रतिष्ठा तथा सम्मान आदि की प्राप्ति होती है।

28. वेशि योग

यदि किसी कुंडली में सूर्य से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में वेशि योग बनता है।  इससे जातक को अच्छा चरित्रयश तथा प्रसिद्धि प्रदान करता है।

29. वाशि योग 

किसी कुंडली में सूर्य से पिछले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में वाशि योग बनता है। इससे जातक को स्वास्थ्यप्रसिद्धिआर्थिक समृद्धि तथा किसी सरकारी संस्था में लाभ एवम प्रभुत्व का पद प्रदान होता है।

30. उभयचरी योग 

यदि किसी कुंडली में सूर्य से पिछले घर में तथा सूर्य से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में उभयचरी योग बनता है इससे जातक को नामयशप्रसिद्धिसमृद्धिप्रभुत्व का पद आदि प्रदान होता है।

4 comments:

  1. Vastu shastra is a traditional Hindu system of architecture which literally translates to "science of architecture." These are texts found on the Indian subcontinent that describe principles of design, layout, measurements, ground preparation, space arrangement, and spatial geometry.
    https://www.astrologerrudra.com/astrologer-in-new-york.php

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